जो उजाले दीदा ए तर से हुए
हम महमां से फिर अपने ही दर से हुए
कटती गयी यूं सांस पर सांस ऐसे कि
अपने ही न हुए सब के हुए
मीरास मेरे दिल की रूसवा अब हो ही क्यों
कब किसी ग़रज़ से किसी घर के हुए
जा ब जा मिलते है तेरे साये यूं
आईना भी देखा तो दंग से हुए
जो उजाले दीदा ए तर से हुए
हम महमां से फिर अपने ही दर से हुए
कटती गयी यूं सांस पर सांस ऐसे कि
अपने ही न हुए सब के हुए
मीरास मेरे दिल की रूसवा अब हो ही क्यों
कब किसी ग़रज़ से किसी घर के हुए
जा ब जा मिलते है तेरे साये यूं
आईना भी देखा तो दंग से हुए