जो उजाले दीदा ए तर से हुए
हम महमां से फिर अपने ही दर से हुए

कटती गयी यूं सांस पर सांस ऐसे कि
अपने ही न हुए सब के हुए

मीरास मेरे दिल की रूसवा अब हो ही क्यों
कब किसी ग़रज़ से किसी घर के हुए

जा ब जा मिलते है तेरे साये यूं
आईना भी देखा तो दंग से हुए

अनिलनखासी

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